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रुद्राक्ष की उत्पत्ति, प्रकार एवम् लाभ


 

रुद्राक्ष की उत्पत्ति, प्रकार एवम् लाभ 📿

त्रिपुरस्य वधे काले रुद्रस्याक्ष्णोऽपतंस्तु ये । अश्रुणो बिन्दवस्ते तु रुद्राक्षा अभवन् भुवि ॥ रुद्राक्ष की उत्पत्ति पुराणों और ग्रंथो में कहा गया है, कि त्रिपुर नामक दैत्य था उसने समस्त देवलोक में आतंक मचा रखा था । एक दिन समस्त देवताओ ने भगवान रुद्र अर्थात शंकर के पास जाकर त्रिपुर के आतंक से देवलोक की रक्षा करने की प्रार्थना की। तब भगवान शंकर ने देवताओं की रक्षा के लिए दिव्य और ज्वलंत महाघोर रूपी अघोर अस्त्र का चिंतन किया। इस चिंतन के समय भगवान रुद्र के नेत्रों से आंसुओं की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं, जिससे रुद्राक्ष वृक्ष की उत्पत्ति हुई। जब रुद्राक्ष का फल सूख जाता है, तो उसके ऊपर का कवच उतार के इसके अंदर से गुठली प्राप्त होती है, यही असल रूप में रुद्राक्ष है | इस गुठली के ऊपर एक से चौदह तक धारियां बनी रहती हैं, इन्हें ही इनका मुख कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथानुसार 21 मुख तक के रुद्राक्ष होने के प्रमाण हैं, परंतु वर्तमान में 14 मुखी के पश्चात सभी रुद्राक्ष अप्राप्य हैं। “हूं नमः इति प्रत्येकमष्टोत्तरशतं जप्ता शिवाम्भसा प्रक्षाल्य धारणीयम् ।” “हूं नमः” इस मंत्र से प्रत्येक रुद्राक्ष को पुष्प से स्पर्श करते हुए 108 बार जप करें। फिर शिवलिंग के साथ रखकर अभिषेक करके धारण करें। “ विना मन्त्रेण यो धत्ते रुद्राक्षं भुवि मानवाः । स याति नरकं घोरं यावदिन्द्राश्चतुर्द्दश ॥ बिना मंत्र जप के रुद्राक्ष धारण करना पाप कहा गया अरुद्राक्षधरो भूत्वा यद्यत् कर्म्म च वैदिकम् । करोति जपहोमादि तत् सर्व्वं निष्फलं भवेत् ॥ “ अर्थ-बिना रुद्राक्ष धारण किए जो भी जप तप किया जाता है वह व्यर्थ हो जाता है- “रुद्राक्षधारणादेव नरो देवत्वमाप्नुयात् ॥” अर्थ- रुद्राक्ष पहनने से मनुष्य देव स्वरूप हो जाता है रुद्राक्ष के प्रकार :- एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात शिव है वह ब्रह्महत्या को दूर करता है तथा अग्नि स्तंभन और अमरता प्राप्त होती है - एकवक्त्रः शिवः साक्षात् ब्रह्महत्यां व्यपोहति । अवध्यत्वं प्रतिश्रोतो वह्निस्तम्भं करोति च ॥ इसके देवता भगवान शंकर, ग्रह- सूर्य और राशि सिंह है। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।। 2 मुखी रुद्राक्ष हरगौरी कहा गया है इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है। मंत्र- ।। ॐ नम: ।। 3 मुखी रुद्राक्ष- इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता है। इसके देवता अग्नि देव, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है। मंत्र- ।। ॐ क्‍लीं नम: ।। 4 मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा जी के समान कहां गया है वह नर हत्या को दूर करता है-- चतुर्व्वक्त्रस्तु धाता स्यात् नरहत्यां व्यपोहति । चार मुखी रुद्राक्ष से मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्‍मकता के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता ब्रह्म देव, ग्रह- बुध एवं राशि मिथुन और कन्‍या है। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।। पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे ज्यादा पेड़ पर लगते हैं और उनकी सुंदरता और असली होना ज्यादा प्रमाणित है। पंचमुखी रुद्राक्ष कालाग्नि नाम के कहे गए हैं । इनके धारण करने से अगम्यागमन अभक्ष्य भक्षण जैसे पापों से भी व्यक्ति मुक्त हो सकता है- पञ्चवक्त्रः स्वयं रुद्रः कालाग्निर्नाम नामतः । अगम्यागमनाच्चैव अभक्षस्य च भक्षणात् । मुच्यते सर्व्वपापेभ्यः पञ्चवक्त्रस्य धारणात् ॥ इसके देवता भगवान कालाग्नि रुद्र, ग्रह- बृहस्‍पति एवं राशि धनु व मीन है। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।। छह मुखी रुद्राक्ष- इसे ज्ञान, बुद्धि, संचार कौशल और आत्‍मविश्‍वास के लिए पहना जाता है। इसके देवता भगवान कार्तिकेय, ग्रह- शुक्र एवं राशि तुला और वृषभ है। मंत्र : ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।। सात मुखी रुद्राक्ष- इसे आर्थिक और करियर में विकास के लिए धारण किया जाता है। इसकी देवी माता महालक्ष्‍मी, ग्रह- शनि एवं राशि मकर और कुंभ है। मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।। आठ मुखी रुद्राक्ष- इसे करियर में आ रही बाधाओं और मुसीबतों को दूर करने के लिए धारण किया जाता है। विनायकोऽष्टवक्त्रः स्यात् सर्व्वानृतविनाशकृत् । इसके देवता भगवान गणेश, ग्रह- राहु है। मंत्र- ।। ॐ हूं नम:।। 9 मुखी रुद्राक्ष साक्षात भैरव है वह शिव के साथ व्यक्ति को सायुज्यता प्रदान करता है-- भैरवो नववक्त्रः स्यात् शिवसायुज्यदायकः ॥ ग्रह- केतु है।मंत्र- ।। ॐ ह्रीं हूं नम:।। 10 मुखी रुद्राक्ष एवं विष्णु स्वरुप है भूत प्रेत पिशाच आदि को दूर हटाता है- दशवक्त्रः स्वयं विष्णुर्भूतप्रेतपिशाचहा । इसे नकारात्‍मक शक्‍तियों, नज़र दोष एवं वास्‍तु और कानूनी मामलों से रक्षा के लिए धारण किया है। इसके देवता भगवान विष्‍णु जी हैं। मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।

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